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अल्प मधुमास, कल्प वनवास... Alap Madhumas, Kalp Madhumas -- कविता

  अल्प मधुमास, कल्प वनवास... भाग्य में लिखा था क्यों यह बात, अल्प मधुमास, कल्प वनवास....  दो पल ठहरी मिलन की बेला,  यु...


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अल्प मधुमास, कल्प वनवास...



भाग्य में लिखा था क्यों यह बात,

अल्प मधुमास, कल्प वनवास....


 दो पल ठहरी मिलन की बेला,

 युग समतुल्य विरह का बादल।

 दिव्य-मांग की ललित-सी लाली,

 शीघ्र प्राण से हो गया ओझल।


 तेरा हाथ नहीं और ना ही साथ,

 देखो क्षण-क्षण व्याकुल हैं साँस।

भाग्य में लिखा था क्यों यह बात,

 अल्प मधुमास, कल्प वनवास....


 अश्रु के प्रतिकण में है जलधर,

 व्यथित हृदय में उठती हलचल।

 कहाँ शून्य में चले गए तुम,

 देकर तप्त, मौन मरुस्थल।


 इस रात का कभी नहीं है प्रात,

 मैं बन कर रह गई हूँ उपहास।

भाग्य में लिखा था क्यों यह बात,

 अल्प मधुमास, कल्प वनवास...


 मन-मस्तिष्क में स्मृति-चिंतन,

 भर गए दिल में भाव मृदुल।

 नैनों में सिमटी निर्झरिणी,

 यह कोमल उर है विरहाकुल।


मैंने थाम लिया है कलम का गात,

 जग गई जिया में  काव्य की आस।

भाग्य में लिखा था क्यों यह बात,

 अल्प मधुमास, कल्प वनवास..

 ...सुधा कुमारी जूही




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