गाँव की मिट्टी और शहर की धूल लोग कहते हैं, गाँव की मिट्टी में, जो खुशबू, प्यार और संस्कार हैं। वह शहर की धूल में कहाँ मिल पाते हैं? तो फ...
लोग कहते हैं,
गाँव की मिट्टी में, जो खुशबू, प्यार और संस्कार हैं।
वह शहर की धूल में कहाँ मिल पाते हैं?
तो फिर लोग हरदम शहर की ओर क्यों भागते पाएं जाते हैं?
कहते हैं शहर में तो सिर्फ प्रदूषण, बीमारी, परेशानी और बर्बादी है
फिर भी लोग शहर को ही क्यों अपनाते हैं?
और फिर कहते हैं,
कितनी भी सुख सुविधा मिल जाएं शहर की इन गलियों में
मगर गाँव की खुशबू को हम कभी भी भूला नहीं पाते हैं।
फिर लोग गाँव जाने के नाम से क्यों कतराते हैं?
अपनों बच्चों को गाँव के रहन-सहन से दूर क्यों ले जाते हैं?
शहर में रहनेवाले अपने शहरी रहन-सहन पर क्यों इतराते हैं?
गाँव से शहर, शहर से विदेश की ओर पलायन क्यों कर जाते हैं?
फिर भी लोग कहते हैं,
गाँव की मिट्टी की खुशबू शहर की धूल में कहाँ हम पाते हैं ?
गाँव को शहर से जोड़ने के सपने देखे जाते हैं।
विकास के नाम पर गाँव को शहर में तब्दील किए जाते हैं।
कच्ची पगडंडी से पक्की सड़क,
खेत -खलिहान बड़े-बड़े ईमारतों में बदल दिए जाते हैं।
लोगों में शहरी कहे जाने की भावना पनपते पाएं जाते हैं।
फिर भी लोग कहते हैं,
गाँव की मिट्टी की खुशबू शहर की धूल में कहाँ हम पाते हैं?
गांव वाले भी अपने बच्चों की शिक्षा के लिए
शहर की ओर दौड़ लगाते हैं।
अंग्रेजी शिक्षा का महत्व घर और गाँव वालों को समझाते हैं।
हिन्दी और अपनी बोलियों में शिक्षा दिलाने को,
बच्चों के भविष्य की बर्बादी बताते हैं।
फिर गाँव की मिट्टी की खुशबू और शहर की धूल की बातें क्यों सुनाते हैं?
जबकि हम सब मन में तो शहर को ही,
अपना आशियाना बनाने की चाहत और सपने संजोएं बैठे पाएं जाते हैं।
फिर भी लोग कहते हैं,
गाँव की मिट्टी की खुशबू शहर की धूल में कहाँ पाते हैं?
No comments
Post a Comment